दिनकर जी की कविता जो दिल को छू गयी।

Raghvendra Pandey
2 min readJan 10, 2018

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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी का रचना संसार बहुत विस्तृत है।गद्य, कविता, निबंध जैसी अनेकों विधाओं को दिनकर जी अपनी लेखनी से समृद्ध किया है।

कुछ दिन पहले यूट्यूब पर रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की कविता ‘चाँद और कवि’ कुमार विश्वास के मधुर स्वर में सुनने को मिली। कुमार विश्वास ने तो जैसे अमृत भर दिया हो कविता में। क्या बताऊँ, क्या असर हुआ। तब से उस कविता को ५० बार सुन चुका हूँ। शायद संगीत सम्प्रेषणता को बढ़ा देता है। नीचे मैं कविता और उसका यूट्यूब लिंक दे रहा हूँ। आप भी पढ़िए और आनंद उठाइये।

कविता का यूट्यूब लिंक

चाँद और कवि

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।

जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।

मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ,
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ।

मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे-
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।

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Raghvendra Pandey
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Written by Raghvendra Pandey

Interested In Poetry, Politics, History, Religion, Philosophy, Statistics and Data Science.

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