ग्रामीण भारत : समस्याएं और समाधान-1

Raghvendra Pandey
3 min readJan 13, 2018

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महानगरों में बैठकर हम ग्रामीण भारत की एक अलग ही छवि बनाते है, जैसे एक शांत स्थान, हरे-भरे खेत, सुकून भरी जिंदगी वाला ग्रामीण भारत।लेकिन क्या वो सच में सुकून में है ?आइये, ग्रामीण जिंदगी से जुड़े हुए कुछ ऐसे ही पहलुओं कों देखते है।

आज ग्रामीण भारत संकट की स्थिति में है। उसका कारण कृषि में बढ़ती हुयी चुनौतियां है ।खेती में बढ़ती लागत, और उस अनुपात में कृषि उत्पादों के मूल्य में वृद्धि न होने से नेट मुनाफा बढ़ ही नहीं रहा है। यहाँ तक कि कुछ फसलों में ये घट भी जा रहा है। उदाहरण के लिए चना पिछले साल 6000–7000 रुपये प्रति क्विंटल था , वो इस वर्ष 3900–4500 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। यही हालत आलू किसानो की भी है।इन सब का परिणाम हम किसानो के असंतोष, धरना- प्रदर्शन, आत्महत्याओं में देख सकते है।

किसानों के आत्महत्या करने के कई कारण है। सबसे बड़ा कारण उपजो का सही मूल्य न मिलना है । एक अन्य प्रमुख कारण किसानों का अपने कर्जो को न चुका पाना है। गावों में किसान अपने खाने भर की उपज तो पैदा कर लेते है।समस्या तब पैदा होती है, जब किसानो को अचानक से कोई बड़ा खर्च जैसे ,लड़की की शादी या अचानक से तबियत ख़राब हो जाती है अथवा वो मकान निर्माण, करना चाहते है।इस स्थिति में किसान को कर्ज लेना ही पडता है। जिसको वो अपने कम आय के कारण लौटाने की स्थिति में नहीं होता और वह कई बार ऊबकर आत्महत्या कर लेता है।आत्महत्या के इस पहलू पर भी ध्यान देने की जरुरत है।

दूसरी सबसे बड़ी समस्या ग्रामीण और शहरी भारत के बीच बढ़ती दूरी का है । 1991 के उदारीकरण के बाद ग्रामीण और शहरी भारत के बीच बड़े पैमाने पर एक असंतुलन पैदा हुआ है। इसके कई कारण है। उदारीकरण के बाद नौकरियों के जो अवसर पैदा हुए, उस का लाभ ग्रामीण भारत अपनी खस्ताहाल शिक्षा व्यवस्था के कारण नहीं उठा पाया और शहरी भारत आगे निकल गया। उदाहरण के लिए आईटी सेक्टर में ग्रामीण भारत के बहुत कम युवा कार्यरत है, क्योकि ख़राब शिक्षा व्यवस्था के कारण उनके पास पर्याप्त स्किल नहीं है , जबकि शहरी युवाओ ने आईटी क्षेत्र में हुयी क्रांति का भरपूर फायदा उठाया और वो काफी आगे निकल गए | जिससे स्वाभाविक रूप से एक असमानता पैदा हुयी है और वो बढ़ती ही जा रही है।
इसलिए ‘अवसरों की समानता’ होने के साथ ये भी जरुरी है कि शिक्षा के मामले भी ग्रामीण युवाओ को शहरी युवाओ के स्तर पर लाया जाये, तभी सही मायने में वो प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे और अवसरों का लाभ उठा पाएंगे।

शिक्षा के मुद्दे को ही आगे बढ़ाते हुए ग्रामीण भारत की भीषण समस्या नक़ल के तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा।मेरे गृह जनपद और उसके आस-पास के क्षेत्रो में ये समस्या बहुत ही भीषण रूप में व्याप्त है। ये समस्या कैंसर की तरह है और एक उद्योग का रूप ले चुकी है। लोग 5000–10000 खर्च करके हाइस्कूल, इंटरमीडिएट, यहाँ तक की स्नातक-परास्नातक तक कि डिग्री प्राप्त कर लेते है। और अंत में बेरोजगार ही रह जाते है।
अतः सरकार और समाज दोनों को ग्रामीण भारत में पनप रहे असंतोष और उनकी समस्याओं पर ध्यान देने की जरुरत है तभी सही मायने में एक समावेशी और खुशहाल भारत बनाया जा सकता है। ऐसा भारत, जहाँ कर्ज में डूबे किसानों को आत्महत्या करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

(यह इस श्रृंखला का पहला भाग है। शेष भाग-2 में)

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Written by Raghvendra Pandey

Interested In Poetry, Politics, History, Religion, Philosophy, Statistics and Data Science.

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